माँ ...
mother's love |
लेकिन अभी कुछ दिनों की ही बात है जब में अपनी चार महीने की बेटी को नहला कर उसको सुलाने के प्रयास में उसके साथ खेल रही थी, तब मैंने उसके दोनों पैरो को खेल - खेल में चूमना शुरू कर दिया और धीरे धीरे उसको सहलाने लग गयी,वो भी मुझे अवाक् हो कर देखने लगी। बाद में मैंने उसके पैरो को अपने माथे पर रख लिया और उस समय मेरी भावना में मेरी छोटी नन्ही परी के लिए प्यार और शुक्रिया निकल रहा था की वो मुझे मिली। जब मैंने अपनी गर्दन उठा के उसकी तरफ देखा तो उसकी एक आँख से आंसू टपक रहा था। अब ये मुझे नही पता की 2 मिनट पहले खिल खिला के हँस रही मेरी बच्ची ने वो शांत आंसू क्यों टपकाया। बाद में उसने मुझे एक स्माइल दी और उसे देख मेरी आँखों से भी आंसू टपक गए, मैंने उसे गले लगा लिया।
तब जा कर मुझे एहसास हुआ की माँ ही नही बल्कि बच्चे भी माँ की बात समझते है चाहे वो बड़े हो गए हो या फिर नवजात हो। एक अनूठा और कुछ अनोखा रिश्ता जरूर होता है माँ और बच्चे का, जो कोई समझ ही नही सकता सिवाए उन दोनों के। जो रिश्ता चार महीने पुराना लग रहा था वो तो नौ महीनो को जोड़ कर बना हुआ रिश्ता था। सोचिये क्या कुछ आपके साथ भी ऐसा हुआ है अगर हां तो इस रिश्ते पर भरोसा करिये ये ही रिश्ता है जो कभी धोका नहीं देता एक माँ के लिए एक माँ की तरफ से, और एक बेटी के लिए एक बेटी की तरफ से...।
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